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बुधवार, 5 नवंबर 2025

प्राथमिक सिक्छा " महतारी भासा"मँ ही हो... छत्तीसगढ मँ छत्तीसगढ़ी भासा सहित हलबी, गोंडी , सरगुजही, अऊ कुडु़ख जइसे मातृभासा मँ पढई लिखई सुरु होवय । छत्तीसगढ मोर जनमभूमि, मोर करमभूमि, अऊ सांस सिरा गे त‌ मरनभूमि ।मोर छत्तीसगढ महतारी ल बारमबार नमन् हे ।

छत्तीसगढ के पावन भुइंँया, जिहाँ अरपा, पइरी , हसदेव नदी के धार हे, महानदी, शिवनाथ अऊ इंदिरावती के अपार जलरासि हे ।

छत्तीसगढ़ के" राजभासा" छत्तीसगढ़ी........

छत्तीसगढ राज बने 25 बछर होगे ,अऊ छत्तीसगढ़ी जनभासा ले राजभासा के दरजा पाय 18 बछर होगे ,सन् 2007 मँ छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग के गठन होय रहीस फेर आज तक न तो छत्तीसगढी भासा मँ पढई लिखई सुरु होइस अऊ न ही सरकारी कामकाज के भासा बन पाइस।ए राजभासा छत्तीसगढ़ी के कइसे सम्मान हे ?????

छत्तीसगढ़ी भासा के इतिहास......-

इतिहास साक्छी हे , छत्तीसगढ़ी ह खड़ी बोली के अग्रजा हे .... पहिली जनम लिये हे छत्तीसगढ़ी ह .....एखर जुन्ना नांँव हे "कोसली " अऊ हैहयवंस राज मँ गोड़ राजा " धुरवा " के चैतुरगढ या रतनपुर राज मं जनम होय रहीस ।

छत्तीसगढ़ी माँ महामाया के परसाद हे, रतनपुर एखर पालना ।

हमर "छत्तीसगढ़ी भासा ", संस्कृति के परान वायु .......-

हमर समाज के निरमान एसी मान्यता के अधार ले होय रहीस हे के हमर "छत्तीसगढ़ी भासा "ह हमर संस्कृति के परान हे ।

जइसे सरीर मँ बिना आतमा के कोई महत्व नहीं रहय ,वइसने बिना भासा के संस्कृति मृतप्राय समान हे ।

छत्तीसगढ़ के आतमा,वोखर भासा हे ।भासा बहांची तो संस्कृति घलव बंहाच जाही  , यदि भासा मर जाही तब संस्कृति भी मर जाही ।

बिना छत्तीसगढी के भला छत्तीसगढ के का पहचान??? हर प्रांत के अपन चिनहारी भासा होथे …

जइसे बंगाल मँ बंगला , पंजाब मँ पंजाबी , गुजरात मँ गुजराती , महाराष्ट्र मँ मराठी , कर्नाटक मँ कन्नड़ ,असम मँ असमिया , तमिलनाडु मँ तमिल ,केरल मँ मलयालम भासा मँ सिक्छा के माध्यम हे , कामकाज के भासा हे ,वइसने छत्तीसगढ के मातृभासा छत्तीसगढ़ी हे ।

भासा , संस्कृति के संवाहक होथे , यदि भासा खतम हो जाही तो संस्कृति , भी समाप्त हो जाही ,साथ ही साथ वो राज्य के इतिहास , रीति-रिवाज खान-पान परंपरा , सब खतम हो जाही । बिना छत्तीसगढी भासा के छत्तीसगढ़ के का चिनहारी होही?

"महातारी - भासा छत्तीसगढ़ी "के कोई विकल्प ही नहीं हे ..........!

छत्तीसगढ़ के ८५% मइनखे मन के मातृभासा छत्तीसगढ़ी हे । छत्तीसगढ के लोक संस्कृति ,लोक साहित्य , लोक कला , अऊ लोक परंपरा छत्तीसगढ़ी मँ ही व्यक्त होथे , कोई दूसर भासा मं नही होवय ।

       ‌पृथक छत्तीसगढ राज्य आंदोलन के उद्देश्य छत्तीसगढ के लोक संस्कृति , लोक साहित्य अऊ इतिहास के संरक्छन समवरधन करना भी रहीस ।

      छत्तीसगढ के अस्मिता के रक्षा करे के पवित्र उद्देश्य के साथ हमर पुरखा मन छत्तीसगढ राज के कल्पना भी करे रहींन । 

"पढई लिखई"अऊ "सरकारी कामकाज"के भासा बनंय छत्तीसगढी ........!

छत्तीसगढ राज्य बने २५ बछर होगे । छत्तीसगढ़ी भासा जनभासा ले राजभासा के दरजा पाय 18 बछर होगे।

छत्तीसगढ़ी भासायी मइनखे मन के चिनहारी छत्तीसगढी आय ।

फेर इँहा के सरकार न तो छत्तीसगढी भासा मँ पढई लिखई सुरु करवात हे, अऊ न छत्तीसगढ़ी भासा ल कोनों सरकारी कामकाज के भासा बनाइस ।

जबकि छत्तीसगढ़ी भासा के ब्याकरन ,हिंदी ब्याकरन ले पहिली के लिखाय हे । ब्याकरन के लिखोइया छत्तीसगढ के हीरालाल काव्योपाध्याय हें ।

छत्तीसगढ़ी भासा के लिपि देवनागरी हे,

सोध के बिसय हे छत्तीसगढ़ी मंँ , मुहावरा हे ,सब्दकोस हे ,प्रसासनिक सब्दकोस घलव हे , जेखर दू भाग राजभासा आयोग तीर पेटी मँ भराय माढ़े हे , जबकि हर कार्यालय मँ वोला भेजे के प्रबंध करना चाही ।

ए सब होय के बाद भी छत्तीसगढ़ मं छत्तीसगढ़ी भासा उपेक्षा के सिकार हे ।

"छत्तीसगढ़ी राजभासा आयोग" केवल पुस्तक छपवाय के बूता मँ लगे हे अऊ कवि सम्मेलन आयोजित करवाय मँ ।

१८ बछर ले जेन झूनझूना धरा के भुलवारे के उदीम राजभासा आयोग अऊ सरकार ह करे हे , वो छत्तीसगढ़िया मन आज २५ बछर के गबरू जवान होगे हें  ,वोखर मन के सरीर मंँ महतारी के गोरस ह , लहू बन के बोहावत हे ,ए लहू , महतारी के करजा उतारे बर ,वोखर भासा अऊ संस्कृति के सम्मान बर धार बनके उबाल मारे बर धर ले ,एखर पहिली सरकार चेत करय ।

महतारी भासा छत्तीसगढ़ी के माध्यम ले कम से कम पहिली कक्छा ले पाँचवी कक्छा तक सुरु करवाना ही हमर लक्ष्य हे । 

संविधान , सिक्छा नीति ,बइग्यानिक खोज ,सिक्छा के कानूनी अधिकार ,न्यायिक निर्णय , सहित सबो महान मइनखे मन घलव एही कहत हे के मातृभासा मँ सिक्छा ले लइका के सर्वांगीण विकास होथे , तभो ले सरकार के आँखी ,कान मुंदाय हे ।

भासा के नांँव ले के बेंदरा कूदई करोइया,भासायी माफिया ए बात उपर कछु बिचार कर अपन जुबान खोलही या अपने आप मँ मगन हो ए सब तमासा होवत देखत रहीं ।

छत्तीसगढ़िया सुवाभिमान ल कुचरे के कुत्सित चाल कहीं भारी न पड़ जाय ।एखर गंभीरता ल समझना परही ।

कहीं अफसर अऊ तानासाही प्रवृत्ति अऊ भाव वाले बाहरी तत्व मन ल ए डर ,भय तो नहीं सतावत हे के छत्तीसगढ़ मँ छत्तीसगढ़ी भासा मं पढई लिखई सुरु करवाय ले कहीं छत्तीसगढ़िया अस्मिता तो नहीं जाग जाही, छत्तीसगढ़िया मन के भीतर ..???

काबर के यदि कोई भी व्यक्ति के पहचान या चिनहारी खतम करना हे त वोखर भासा ल खत्म कर देना चाहिए ।

भासा खतम , चिनहारी खतम , संस्कृति खतम 

छत्तीसगढ़ी भासा के संग खिचरी पढाई????

अभी स्कूल मँ छत्तीसगढ़ी अऊ हिंदी बिसय ,मिंझरा पढई लिखई होवत हे ।

बीस पाठ हिंदी अऊ पांँच पाठ छत्तीसगढ़ी भासा मँ ।

अब जेन लइका हिंदी ल सुरु के पढई लिखई के माध्यम बनाय हे , वोहर छत्तीसगढ़ी ल पढे लिखे बर कइसे रूचि बनाही ????

अब्बड़ दुख के बात हे के छत्तीसगढ़ी भासायी लइका पताल माने टमाटर तो जानत हे फेर टमाटर माने पताल, नई जानत हे ।

मतलब हिंदी मं ही पर्यायवाची सब्द दिये गे हवय । छत्तीसगढ़ी भासा के पढे बर हिंदी पर्यायवाची सब्द ।

छत्तीसगढ़ी भासा के सब्द के अर्थ छत्तीसगढ़ी भासा मं ही बताना चाही ,हिंदी मं नहीं ।

छत्तीसगढ़िया लइका ,हिंदी के २० पाठ पढ़त हे अऊ छत्तीसगढ़ी के ५ पाठ !!!

गुरुजी भी छत्तीसगढ़ी के पांच पाठ पढाय बर रूचि नहीं लेवय ।

सिक्छा के संवैधानिक अधिकार.....

मातृभासा के माध्यम से सिक्छा पाय के अधिकार हमन ल हमर संविधान के भाग १७ के अध्याय ४ के अनुच्छेद ३५० (क ) द्वारा निश्चित करे गे हवय ।

ए अधिकार हमन ल सन् १९५० ले मिले हवय ।

पर हम छत्तीसगढ़ी भासायी ए अधिकार ले अभी तक बंचित हवन । २००९ मँ निसुल्क अऊ अनिवार्य बाल सिक्छा अधिकार अधिनियम कानून बने हे ,जेमा अध्याय ५ के अंतर्गत २९ (च) के अनुसार सिक्छा के माध्यम मातृभासा ही होही ।

फेर का कारन हे के छत्तीसगढ़ी भासायी लइका मन ल वोमन के मौलिक अधिकार से बंचित करे जावत हे ????

छत्तीसगढ़ी भाषा बर ए सोचनीय, बिचारनीय हे 

छत्तीसगढ के चिनहारी तो छत्तीसगढिच्च आय ,अब ढाई करोड़ मइनखे मन के महतारी भासा, आज भी अपन जगा पाय बर , स्थापित होय बर, पढाई लिखाई के माध्यम बने बर , सरकारी कामकाज के भासा बने बर , अपने ही राज मँ गोहरावत हे, कलपत हे , ।

कहीं सांत छत्तीसगढ़ अपन हक अऊ अधिकार बर लड़त असांत रुप न धर ले ?????

लेखिका:- लता राठौर, सामाजिक कार्यकर्ता बिलासपुर छत्तीसगढ़


गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

आवव !!! हम सब छत्तीसगढ़ी भासायी समाज के मइनखे मन किरिया खाइन, के अपन "महतारी भासा" "छत्तीसगढ़ी" मँ पढाई लिखाई के माध्यम बनाय अऊ… सरकारी कामकाज के भासा बनाय बर, आघु आइंन ताकि हमर नवा पीढ़ी अपन मातृभासा ल झिंन भुलावय ।

 

भासा, संस्कृति के संवाहिका होथे, यदि भासा सिरा जाही, नंदा जाही त संस्कृति भी समाप्त हो जाही…   

कोई भी मइनखे हो या पसु, पक्छी हो, चिनहारी वोखर भासा से ही होथे, हम वोखर चिनहारी वोखर भासा ले ही करथन । अलग-अलग प्रांत मँ अपन अपन मातृभासा होथे, जेन मातृभासा ल बच्चा मन अपन माँ के गर्भ से ही सीखकर आथे ।

महाभारत के अभिमन्यु…

महाभारत के अभिमन्यु हर सुभद्रा अऊ अर्जुन के संवाद गर्भ मँ रहकर ही सुने रहीस, जेमा अर्जुन चक्रव्यूह रचना कइसे करे जाथे, एखर गोठ बात करत रहीथे, फेर चक्रव्यूह ल कइसे तोड़के बाहिर आय, ए बात ल सुने के पहिली ही वोला नींद आ गे । तभे कौरव सेना द्वारा रचित चक्रव्यूह ल अभिमन्यु ह भेद नहीं पाइस अऊ युद्ध मँ वीरगति ल प्राप्त होइस...

सामाजिक कार्यकर्ता : श्रीमती लता राठौर : बिलासपुर छत्तीसगढ़ 

सोमवार, 27 अक्टूबर 2025

हमारी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी को शासकीय कामकाज की भाषा बनाया जाएं… विचारक सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता सत्यवती शुक्ला की अपील...

जिसमें हो नई उमंग और हो नई आशा, वही होती है दिल में बसने वाली मातृभाषा

नवम्बर सन् 2000 में छ्त्तीसगढ़ हमारे देश का 26 वाँ राज्य बना।नया राज्य बनने से जनता नया-नया सपने देखने लगी और सभी क्षेत्रों में विकास के लिए प्रयास शुरू हुए और इन्हीं प्रयासों में एक महत्वपूर्ण प्रयास था हमारी मातृभाषा छतीसगढी़ को राज काज की भाषा बनाने का…

विषय है ! परिवर्तित व परिमार्जित का…

प्रत्येक लोक भाषा जब राजभाषा बनती है तो उसके समक्ष यह यक्ष प्रश्न होता है कि वह समय के साथ अपने आप को कितनी शीघ्रता से परिवर्तित व परिमार्जित करती है?अन्य भाषा के शब्दों को सुविधा की दृष्टि से किस सीमा तक आत्मसात करती है।

संघर्ष सफल हुआ..!

शुरूआत से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाने के लिए बहुत पसीना बहाया गया, जिन्होंने मेहनत करीं, अपने सब काम काज, घर गृहस्थी की व्यवस्था छोड़-छाड़ के आखिर सफल हुए और छत्तीसगढ़ राज्य बना के दम लिया। 28 नवम्बर 2007 में छ्त्तीसगढ़ विधानसभा ने सर्वसम्मति से छत्तीसगढ़ राजभाषा (संशोधन) विधेयक 2007 पास किया।

छत्तीसगढ़ी को शासकीय कामकाज की भाषा बनाने की मुहिम जारी है..!

अब हमारे बड़ों का ध्यान छत्तीसगढ़ी को शासकीय कामकाज की भाषा बनाने पर है। छत्तीसगढ़ी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और इसका अपना व्याकरण है। छत्तीसगढ़ी भाषा का अपना लोकगीत, लोक कहानी और लोक संस्कृति है, जो किसी भी भाषा के अस्तित्व के लिए अनिवार्य तत्व हैं। 

छत्तीसगढ़ी महतारी का है असीम आशीर्वाद…

धान का कटोरा कहलाने वाला हमारा छत्तीसगढ़ ऋतु परिवर्तन के संग लोक-जीवन के विविध रूप और जीवन की ख़ूबसूरती के दर्शन कराता है। प्राकृतिक सौंदर्य, वनस्पति, खनिज, स्वच्छ पर्यावरण, जल, जीव जंतु हमारी छत्तीसगढ़ महतारी ने हमे हर वो चीज दी है जो सुखद मानव जीवन के लिए जरूरी है वैसे ही हमे छत्तीसगढ़ महतारी ने छत्तीसगढ़ी भाषा भी दी है जिसको शासकीय कामकाज में महत्व दिलाने की जिम्मेदारी हम पूरी कर रहें है ।

हमारी सांस्कृतिक धरोहर..!

यहाँ ‘अरपा पैरी के धार, महानदी हे अपार...छत्तीसगढ़ महतारी की वन्दना को सुनके जहां श्रोता आनंद-विभोर हो जाते हैं वहीं छत्तीसगढ़ की कोठी के धान-धन,प्राकृतिक संपदा आत्म-विश्वास जगाते है,जीवन सिंगार करते हैं। खेत के लहलहाते फसल,लोक-जीवन में लोकगीत के धुन गुनगुनाते हर संघर्ष को सरल बना देते हैं। छेरछेरा, जसगीत, सुआ-गीत, डंडा-गीत, जंवारा-गीत, भोजली, करमा, ददरिया, पंथी-गीत, नाचा-गीत, राउत-नाचा के दोहा, फाग-गीत, बांस-गीत, देवारी-गीत, गौरा-गीत, बिहाव-गीत, लोक-गीत, लोक-नाटय आदि जीवन में विविधता के ख़ूबसूरती को बांधे रखते हैं।खान-पान के अलग ठाठ होते हैं।और इन सब भावों को प्रकट करने का माध्यम होती है मातृभाषा।

अभिन्न हृदय मातृभाषा को नमन हैं..!

मातृभाषा व्यक्ति की पहली भाषा होती है जो उसे जन्म से ही परिवार और समाज से सीखने को मिलती है। यह व्यक्ति की पहचान, संस्कृति, और भावनाओं का अभिन्न हिस्सा होती है। मातृभाषा का महत्व अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। प्रथम, मातृभाषा सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को सहज और प्राकृतिक बनाती है। मातृभाषा में शिक्षा देने से ही समाज का सर्वांगीण विकास संभव है। 

लेकिन केवल स्वप्न देखने से सच नहीं होते,

इनको सच्चे स्वरूप में लाने के लिए प्रचलन और व्यवहार में बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। पर शुरूआत कैसे करें? पहली गुरू मां होती है, बच्चों को घर में छत्तीसगढ़ी बोलने की आदत डालें और इसके लिए घर में बड़ों को छत्तीसगढ़ी बोलनी चाहिए। दूसरी बात जब भी हम आपस में बात करें ,ऑफिस में, बाजार में, मोबाइल में तब हमें राजभाषा छत्तीसगढ़ी में बात करनी चाहिए।

अनुकरणीय उदाहरण भी है…

आप देखतें है कि मराठी, तेलगू, पंजाबी, सिन्धी भाई एक दूसर से अपने भाषा में बात करते हैं‌ और हम सिर्फ उन्हें देखते हैं।अपनी मातृभाषा सीखना थोड़े प्रयास से संभव है और सीखने से हमारा शब्द भंडार लगातार बढ़ता है। हम जैसे अपनी माता का मान-सम्मान करते हैं वैसा ही मान सम्मान छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए जन-जन में होना चाहिए।हमारी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी अपनी विकास यात्रा में है।

मिलकर कदम बढ़ाना है मंत्रालय संचालनालय के कामकाज छत्तीसगढ़ी में करवाना है!

सामान्य रूप से छत्तीसगढ़ी को पढ़ने-लिखने में दिक्कत जरूर आती है लेकिन इतनी दिक्कत नहीं होती की मैदान छोड़ के भागे जाएं। इसके लिए हमारा अपना संकल्प बेहद जरूरी है। 

हमारी जिम्मेदारी है…

सरकार खुद के बलबुते पर किसी भाषा को उन्नत नहीं कर सकती, इसके लिए लोक जागरण जरूरी है । इसमें साहित्यकारों और जनता की जवाबदारी बढ़ जाती है। इसके लिए जो जहाँ पर है उन्हें शपथपूर्वक छत्तीसगढ़ी अर्थात अपनी मातृभाषा की सेवा करनी चाहिए फिर चाहे वह मजदूर हो, किसान हो, चाह कोई सरकारी दफ्तर वाले हो या अन्य जगह काम करने वाले हो, छत्तीसगढ़ के विकास के लिए यह जरूरी है। 

संवाद छत्तीसगढ़ी भाषा में…

भाषा सबको जोड़ने और सांस्कृतिक विकास के लिए ताकतवर माध्यम होती है। छत्तीसगढ़ी बोल-चाल की भाषा होनी चाहिए। अगर हिंदी, अंग्रेजी या अन्य भाषा की शब्दावली के प्रयोग से यदि छत्तीसगढ़ी की सम्प्रेषण-शक्ति बढ़ती है तो इसका स्वागत करना चाहिए। शब्द के मूल भाव पाठक तक पहुंचना चाहिए,अति अक्खड़ता भाषा की ताकत को कमजोर कर सकती है। हमारी बोलचाल सब जगह छत्तीसगढ़ी में होनी चाहिए। 

अनिवार्यता और बाध्यता का महत्व है…

सरकारी और गैर सरकारी सभी स्तर में छत्तीसगढ़ी में पढ़ना-लिखना होना चाहिए।छत्तीसगढ़ी राजभाषा को राजकीय कामकाज की भाषा बनाने के दृढ़ संकल्पित होना पड़ेगा‌। इसके लिए वातावरण तैयार करना जरूरी है। यहाँ के साहित्यकार छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध करने के लिए लेखन करते रहे हैं। 

छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग बहुत अच्छी तरह से काम कर रहा है लेकिन और काम करने की जरूरत है।

छत्तीसगढ़ी भाषा के क्षेत्र विशेष में शब्दों के उच्चारण में भिन्नता और हिंदी के शब्दों के उपयोग की अधिकता दोनों ही छत्तीसगढ़ी भाषा को मानक भाषा बनाने की राह में बडी चुनौती है। अखिल भारतीय प्रशासनिक शब्दकोश में छत्तीसगढ़ी शब्दों को समाविष्ट करके छत्तीसगढ़ी भाषा के मूल शब्दों के साथ साथ अन्य भाषाओं के शब्दों को उच्चारण के आधार पर लिपिबद्ध कर छत्तीसगढ़ी भाषा के शब्द भंडार को विस्तृत कर आधुनिकृत स्वरूप दिया जाना चाहिए। यह शब्दकोश छत्तीसगढ़ी भाषा को शासन के कार्यकलाप में प्रयोग की आधार भूमि का कार्य करेगा। जब छत्तीसगढ़ी भाषा सरकारी काम-काज के साथ गैर सरकारी संस्था में उपयोग होगी, हमारे लेख, पत्र कारिता, बोल चाल, में गति पकडेगी तब समझ में आएगा की यह तो संभावना के सागर में अभी शुरूआत है।

सार बात यही है कि… और अपेक्षा…

सरकार अपने स्तर पर बहुत कुछ कर सकती है। हम छत्तीसगढ़ में अपनी मातृ-भाषा का प्रयोग करने के लिए नहीं सोचेंगे तो क्या दूसरा कोई आकर हमारी भाषा का मान बढ़ायेगा ? छत्तीसगढ़ी के लिए पूरा समर्पण भाव होगा तभी ठोस परिणाम दिखेगा। आइए हम सब मिलके छत्तीसगढ़ी भाषा की सेवा करें जिससे छत्तीसगढ़ महतारी का माथा गर्व से और ऊंचा हो। जिस प्रकार माला को बनाने के लिए एक-एक फूल गूथना पड़ता है वैसे को ही हम सब का प्रयास होगा तभी छत्तीसगढ़ी भाषा का सुंदर स्वरूप चमकेगा। जब यह प्रचलन में आएगा तभी इसका जगमगाता स्वरूप देखने को मिलेगा। शुरू में सब कहेंगे‌ इसका शब्द कोश नया है, इसके प्रचलन में व्यवहारिक कठिनाई है लेकिन अब शब्दकोश बन गये है। अब किसी को बोलने का मौका नहीं है और जब शासकीय कामकाज में भी यह उपयोग होगा तो इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाएगी।

सत्यवती शुक्ला :- विचारक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता जिला एवं सत्र न्यायालय दुर्ग छत्तीसगढ़

हमन ल चाही कि स्कूल, दफ्तर, अउ घर मं छत्तीसगढ़ी मं बात करन ल बढ़ावा देवव… आवव सब मिल के कसम खावव अपन छत्तीसगढ़ी बोली ल जगे रखबो, बढ़ाबो अउ अगली पीढ़ी तक पहुँचा देबो।

मोर माई-बाप, दाई-ददा, अउ गाँव-घरसू लोगन…

छत्तीसगढ़ी भाषा सिरिफ बात करे के साधन नइए, ये त हमर पहिचान, संस्कृती, अउ आत्मा के गंध आय। मोर माई-बाप, दाई-ददा, अउ गाँव-घरसू लोगन अपन भावना यही बोली मं उझरथें, हँसथें, गुनगुनाथें।

याद रखव – जेन समाज अपन भाषा ला…

आज के जमाना मं लोगन अंग्रेजी अउ हिन्दी के चमक मं अपन माटी के बोली ल भुलावत जावत हैं। पर याद रखव – जेन समाज अपन भाषा ल भुला देथे, ओ अपन जड़ ल खो देथे।

छत्तीसगढ़ी मां आत्मा बसथे।

छत्तीसगढ़ी मं अपनपन हे, मिठास हे, अउ अपन संस्कृति के सुघ्घर परछी आय। लोकगीत, पंडवानी, ददरिया, सुवा नाच ये सब मं छत्तीसगढ़ी के आत्मा बसथे।

हमन ल चाही कि स्कूल, दफ्तर, अउ घर मं छत्तीसगढ़ी मं बात करन ल बढ़ावा देवव।

बच्चा मन ल सिखावव कि ये भाषा हमर अभिमान आय।

अखबार, गीत, कविता, अउ नाटक मं छत्तीसगढ़ी ल जगे रहिबे देवव।आवव सब मिल के कसम खावव अपन छत्तीसगढ़ी बोली ल जगे रखबो, बढ़ाबो अउ अगली पीढ़ी तक पहुँचा देबो।

निवेदन 🙏 सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्त यामिनी मैथिल संपर्क करो मो 88151 19232

रविवार, 26 अक्टूबर 2025

जय जोहार संगवारी हो!.. श्रमिक अधिकार संरक्षण विषय ला जान लो अऊ समझ लो… श्रमिक मन के अधिकार मतलब घलों जान लो… फेर संगवारी हो, अधिकार तबे मिलही जब हमन जागरूक होबो।

जय जोहार संगवारी हो!

आज हमन एक बहुत जरूरी गोठ बात करे बर ऑन लाइन चर्चा करत हन – 

हमर चर्चा के विषय हे श्रमिक मन के अधिकार अउ ओकर संरक्षण के। हमर छत्तीसगढ़ म लाखों मजदूर मन रोज मेहनत करत हवंय – खेत म, कारखाना म, सड़क म, अउ घर-घर म। फेर कई बेर ये मन अपन अधिकार ले अनजान रहिथें।

श्रमिक मन के अधिकार मतलब – 

सही मजुरी, सुरक्षित काम के जगह, काम के समय के सीमा, अउ बीमा, पेंशन, छुट्टी जइसन सुविधा। सरकार मन ‘श्रम कानून’, ‘मजदूरी अधिनियम’, ‘ईएसआई’, ‘पीएफ’, अउ ‘बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट’ जइसन कानून बनाय हवे – जेकर तहत मजदूर मन ला सुरक्षा मिलथे।

फेर संगवारी हो, अधिकार तबे मिलही जब हमन जागरूक होबो। 

कई बेर ठेकेदार मन या मालिक मन नियम के उल्लंघन करथें – मजुरी काटथें, ओवरटाइम कराथें, सुरक्षा साधन नइ देवे। ए हालत म हमन ला आवाज उठाए ल परही – यूनियन बनाना, RTI लगाना, अउ श्रम विभाग म शिकायत करना, हमर अधिकार हरे। 

हमर जिम्मेदारी हे के..! 

हमन अपन संगवारी मन ला जागरूक करन – ओमन ला बतावन के काय काय अधिकार हे, अउ ओकर उपयोग कइसे कर सकथन। स्कूल, पंचायत, मोहल्ला म प्रशिक्षण देके, पोस्टर अउ वीडियो बनाके, हमन ये संदेश ला फैला सकथन।

अंत म, 

हमन जम्मो संगवारी मन ला कहिबो – चलव, श्रमिक अधिकार के रक्षा बर एकजुट होव। जब मजदूर जाग जाहीं, तभे समाज म न्याय आही।

जय जोहार आपके अपन संगवारी अमोल मालुसरे 


बुधवार, 22 अक्टूबर 2025

आपका भी एक पेज छत्तीसगढ़ी में होना चाहिए… अधिवक्ता यामिनी मैथिल की अपील...

छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ की मुख्य शासकीय कामकाजी भाषा बनाने के लिए प्रयासरत अधिवक्ता यामिनी मैथिल ने छत्तीसगढ़ी भाषा में अपने डिजिटल पेज की शुरवात करते हुए लिखा है…

संगवारी हो..!

“पढ़ई लिखई के जोती, 
अंधियार दूर भगावय, 
गाँव शहर चमक उठथे, 
जब ज्ञान के दीप जगावय।”

छत्तीसगढ़ी में लिखी इन पक्तियों का अर्थ है: 

शिक्षा का प्रकाश अंधकार मिटाता है; 
जब ज्ञान के दीप जलते हैं, 
तो गाँव और शहर चमक उठते हैं।
छत्तीसगढ़ी को महत्व दिलवाने के लिए आवश्यक है कि, शासकीय कामकाज और शिक्षा व्यवस्था में छत्तीसगढ़ी भाषा का अनिवार्य सुनिश्चित करवाया जाय लेकिन इसके लिए आवश्यक है कि हमारा भी एक पेज छत्तीसगढ़ी भाषा में हो जिसके आधार पर हम अपनी मांग को व्यवहारिक स्वरूप दे सकें। 
इसलिए निवेदन है कि, आपका भी एक छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखकर छत्तीसगढ़ी भाषा का विस्तार, प्रचार प्रसार अभियान में सहयोग दें।

सामाजिक कार्यकर्ता एवं अधिवक्ता यामिनी मैथिल 88151 19232


मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

छत्तीसगढ़ म जन नेता बने बर कुछ जरूरी बात मन ला जानना अउ अपनाना जरूरी हे। ए बात मन ला अपनाकेच, कोनो घलो गांव-गंवई म जन नेता बन सकथे:

🌾 जन नेता बने बर जरूरी बात मन

1. पूछ परख करत रहो! जनता संग जुड़े रहो!  

  •  गांव-गांव घूमो, मनखे मन के दुख-सुख ला समझो 
  • सभा, बैठक, तिहार म भाग लेव
  • छोटे एकार्यक्रम आयोजन करत रहो!

2. सुनई अउ समझई के कला रखो! अवहेलना के पीड़ा ला सहे के सीखो!

  •  मनखे मन के बात ला ध्यान से सुनव  
  • हर वर्ग के समस्या ला समझके समाधान खोजव
  • आप के विचार के मजाक बनाए वालन के हसीं उड़ाएं के सीखो 

3. साफ नियत अउ भरोसा बनावव! मूर्ख नो हन ये प्रमाणित करने के छोड़ो!कोनो झूठ या लालच म नइ पड़व  

  •  अपन काम म पारदर्शिता रखव
  • शासकीय योजना ला जान लो
  • अधिकारी से काम ले के तरीका सिख लो

4. छत्तीसगढ़ी म बात करई अउ लिखई सीखव अऊ दिल से दिल के सहमति बनाओ! 

  •  अपन भाषा म जनभावना ला व्यक्त कर सकथव  
  • भाषण, पर्चा, पोस्टर म छत्तीसगढ़ी के उपयोग करव
  • शासकीय योजना के बढ़ाई अऊ आलोचना छत्तीसगढ़ी भाषा में करो!
  • जनता से संवाद छत्तीसगढ़ी भाषा में करव 

5. जनहित के मुद्दा उठावव अऊ संस्कृति रीति रिवाज के विषय के साथ शासकीय योजना ला जोड़ कर बात करों

  • मजदूर, किसान, महिला, युवा के हक बर आवाज उठावव  
  •  RTI, मनरेगा, पेंशन, शिक्षा, स्वास्थ्य जइसन योजना मन के जानकारी बांटव
  • अवैध खनन अऊ कब्जा के विरोध करो
  • चिकित्सा व्यवसायियों की पंजीकृत स्थिति के पूछ परख करो

6. टीम बनावव अउ सबके संग काम करव सभो के विश्वास बन सके अइसन चर्चा के माहौल बनाओ 

  •  गांव के युवा, महिला समूह, शिक्षक मन संग मिलके काम करो  
  • अकेले नइ, सबके संग मिलके बदलाव लावव
  • विरोधी ला ओखरे काम करन दे अऊ ते हं अपन कार्य योजना से काम करत चल

7. संगठन अउ रणनीति के समझ रखव गोटीबाजी करे के मजा लेव

  •  जन आंदोलन, धरना, आवेदन, जनसुनवाई के तरीका जानव  
  • सही समय म सही तरीका अपनावव
  • विरोधी का गुमराह करे के गोटीबाजी करते चल

8. ईमानदारी अउ सेवा भाव रखव समय अनुसार निर्णय लेते चल

  •  नेता बने के मतलब सेवा करना हे, राज करना नइ ये बात ला समझ लो
  • मनखे मन ला अपन समझव, अपन नइ बनावव
  • विरोधी घलों जरूरी हे एला समझ के नेतागिरी कर 

9. डिजिटल साधन के उपयोग करई सीखव सोशल मीडिया का जरिए बनाव

  •  मोबाइल, व्हाट्सएप, सोशल मीडिया म जनहित के बात फैलावव  
  •  वीडियो, पोस्टर, स्लोगन बनाके जनजागरण करव
  • ऑनलाइन आलोचना करने से स्वयं ला बचाव 

10. छत्तीसगढ़ी संस्कृति अउ परंपरा के सम्मान करव छत्तीसगढ़ी ला प्राथमिकता दो 

  •  लोक गीत, कहिनी, तिहार म भाग लेव  
  • अपन संस्कृति म जनजागरण के रंग घोलव
  • अपन छत्तीसगढ़ के गुणगान से पाछु मत हट

अगर चाहव, तो मैं तोर बर एक जन नेता बने के कार्य योजना या जनजागरण करें बर विषयों के चयन कर शासकीय कार्यालय से जानकारी लेव बर आवेदन घलो बना सकंव। काबर नइ, तोर गांव के समस्या ऊपर एक जन अभियान के रूपरेखा बनाय के देखन? चल संगवारी एक बार नेतागिरी करके देखबो 

सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

"छत्तीसगढ़ी भाषा हमर संस्कृति ला बचाए बर काबर जरूरी हे" ए विषय के विश्लेषण प्रस्तुत करत हंव: मोर विचार ल पढ़ लो संगवारी हो..!

 

छत्तीसगढ़ी भाषा: हमर संस्कृति के आत्मा हरे, हमर अधिकार हे, हमर जिम्मेदारी घलो हे!

छत्तीसगढ़ी भाषा सिरिफ बात करे के जरिया नइ, ए हमर पहिचान, परंपरा, लोककला, अउ सामाजिक संबंध के गहिरा जड़ आय। जब भाषा जिंदा रहिथे, त संस्कृति घलो जिंदा रहिथे। ऐ सेती छत्तीसगढ़ी भाषा ला बचाए अउ बढ़ाए बर काम करना बहुत जरूरी हे। छत्तीसगढ़ के निवासी हन एकरसेती छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास सुनिश्चित करें के जिम्मेदारी हरम आय ! जेनला हमला पूरा करना हे।

🌾 1. संस्कृति के वाहक अऊं आधार हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

छत्तीसगढ़ी म लोकगीत, कहिनी, बइठका, नाचा, करमा, सुआ, पंडवानी जइसन परंपरा हावय। ए सब म हमर भाषा के मिठास अउ भाव छिपे रहिथे। अगर भाषा कमजोर हो जाही, त ए परंपरा मन घलो धीरे-धीरे मिट जाही। एंकर सेती हमला समय रहित ले छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास करे बर पहल करे पढ़ई हमर छत्तीसगढ़ी भाषा ला महत्व देय का पढ़ई!

👪 2. सामाजिक जुड़ाव के जरिया मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

गांव-गांव म लोग छत्तीसगढ़ी म अपन भावना, दुख-सुख, परामर्श, अउ अपन अनुभव बांटथें। छत्तीसगढ़ी भाषा म अपनापन हे, जेन मनखे ला एक-दूसर संग जोड़े रखथे। हमन दुनिया के कोनो भी कोना रहान हमर संस्कृति से हमला छत्तीसगढ़ी भाषा ही जोड़थे! हमर छत्तीसगढ़ महतारी के माटी के महक हमर अंदर जिंदा रखते!

📚 3. शिक्षा अउ जागरूकता म उपयोगी हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

अगर सरकारी योजना, अधिकार, कानून, अउ जानकारी छत्तीसगढ़ी म मिलही, त आम जनता जल्दी समझ सकही। ए भाषा म प्रशिक्षण, पोस्टर, वीडियो बनाके जनजागरूकता बढ़ाय जा सकथे। एखरे सेती हमन छत्तीसगढ़ी भाषा प्रचार प्रसार अभियान चलाकर अपन योगदान देत हन अऊ मोर छत्तीसगढ़ महतारी के आत्मा छत्तीसगढ़ी भाषा ला सरकारी कामकाज के भाषा बनाये बर समर्पित होकर काम करत हन।

🧠 4. बच्चा मन के सीखई म मददगार हे मोर छत्तीसगढ़ी भाषा!

बच्चा मन अपन माई-दादी के बोली म ये दुनिया ला समझे के शुरवात करथे एखर सेती लइका मन के पढ़ई ला छत्तीसगढ़ी मा समझाओ, त ओमन जल्दी समझथें, अपन संस्कृति संग जुड़थें, अउ लैका मन मा आत्मविश्वास बढ़थे। एकर सेती जरूरी हे कि प्रारंभिक शिक्षा मा छत्तीसगढ़ी भाषा होना चाहिए..!

🎭 5. मोर मनोभावना से संवाद मोर छत्तीसगढ़ी भाषा करथे!

छत्तीसगढ़ी भाषा ल महत्व देय के मंच मा हमर संस्कृति और लोककला के विस्तार होथे लोककला अउ रचनात्मकता के विकासछत्तीसगढ़ी म कविता, कहानी, नाटक, गीत लिखे जाथे। ए भाषा कलाकार मन ला अपन भाव प्रकट करे के मंच देथे।

🛡️ 6. छत्तीसगढ़ के अस्तित्व मोर छत्तीसगढ़ी भाषा बचा सकता हे!

भाषा बचाना मतलब संस्कृति बचाना हे अगर हमन छत्तीसगढ़ी ला स्कूल, मीडिया, सरकारी काम म जगह देबो, त हमर संस्कृति ला घलो सम्मान मिलही। भाषा के संरक्षण मतलब पीढ़ी दर पीढ़ी अपन परंपरा के जिंदा रखे के है। हम दुसर भाषा ला शिक्षण संस्थान मा जगह दें हन अऊं हमर छत्तीसगढ़ी ले अपन लइका मन से दूर कर दे हन। एखर सेती लइका मन मोर छत्तीसगढ़ी भाषा से दूर होत जात हे जो व्यथनीय हे 

✊ मोर मानना है गा,:

छत्तीसगढ़ी भाषा ला बचाना, बढ़ाना अउ सम्मान देना हमर जिम्मेदारी हे। ए सिरिफ बोली नइ, ए हमर आत्मा, हमर इतिहास, अउ हमर भविष्य आय। जब तक छत्तीसगढ़ी बोलाय जाथे, तब तक हमर संस्कृति के दीप जलत रहिथे।

संगवारी हो… मोर संग चलो..! 

हमन मन मिलके जनजागरूकता पोस्टर, वीडियो स्क्रिप्ट, लेख सामग्री घलो सोशल मीडिया में डालत जाबो– आऊं "छत्तीसगढ़ी के विकास प्रचार प्रसार अभियान" मा अपन योगदान देत जाबो "हमर बोली, हमर शान आय"। बतावव, मोर साथ देवों ना अप मन? मोर संग चलाओ ना आप मन?

मेह मोर महतारी भाखा बर समर्पित हूं गा मोर साथ आप मन भी देव गा! अमोल मालूसरे


सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दी, शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

बिंदुवार विवरण एवं पृष्ठभूमि:

भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लियाथा, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए:

क. इसके आरंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता।

ख. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

ग. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था।

नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया:

I. इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता।

II. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

III. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

IV. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।

 भारत सरकार ने अब तक निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है:

भाषा

अधिसूचना की तारीख

 

तमिल

12/10/2004

संस्कृत

25/11/2005

तेलुगु

31/10/2008

कन्नड़

31/10/2008

मलयालम

08/08/2013

उड़िया

01/03/2014

 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए 2017 में मंत्रिमंडल के लिए मसौदा नोट पर अंतर-मंत्रालयी परामर्श के दौरान, गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी। पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता है कि कितनी अन्य भाषाएं पात्र होने की संभावना है।

इस बीच, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए।

इस क्रम में, भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से निम्नलिखित मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

i. इसकी उच्च पुरातनता 1500-2000 वर्षों की अवधि में आरंभिक ग्रंथ/अभिलेखित इतिहास की है।

ii. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है।

iii. ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ।

iv. शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं के बाद के रूपों से अलग हो सकते हैं।

समिति ने यह भी सिफारिश की कि निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने के लिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा।

I. मराठी

II. पाली

III. प्राकृत

IV. असमिया

V. बंगाली

 कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य:

शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जाने वाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र शामिल हैं।

रोजगार सृजन सहित प्रमुख प्रभाव:

भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।

शामिल राज्य/जिले:

इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।

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एमजी/आरपीएम/केसी/एमपी प्रविष्टि तिथि: 03 OCT 2024 8:31PM by PIB Delhi(रिलीज़ आईडी: 2061731) आगंतुक पटल : 204

सोमवार, 25 मार्च 2024

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ राज्य के शासकीय कार्यालयों के कामकाज की भाषा बनाए के लिए किया जा रहा मेरा प्रयास... गेंदा फूल से प्रेरित होता है... जैसे गेंदा फूल में सभी को बांधे रखने की क्षमता है... वैसे ही छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलाने के लिए हम सभी को जुड़ना पड़ेगा... पढ़िए एक लेख...

 गेंदा फूल के महत्व को जानना और समझना आवश्यक तो नहीं है लेकिन अगर हम गेंदा फूल के महत्व को समझ लेंगे तो... मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश सरकार के कार्यालयों में कामकाजी भाषा का महत्व मिल जायेगा....

मेरी परिकल्पना गेंदा फूल और CVPPSA 

मेरे छत्तीसगढ़ के लिए गेंदा फूल का महत्व बेहद मायने रखता है क्योंकि छत्तीसगढ़ वासियों के संवेदनापूर्ण परिकल्पना ने ही ससुराल गेंदे फूल जैसी अर्थपूर्ण परिकल्पना को जन्म दिया है जिसके दो कारण है :

पहला : पारिवारिक एकता 

गेंदा फूल दरअसल एक फूल नहीं बल्कि बहुत से फूलों का एक समूह है। गोंदा फूल की वैज्ञानिक परिभाषा पर अगर जाये तो गेंदे के फूल की... प्रत्येक पंखुड़ी दरअसल पंखुड़ी नहीं बल्कि अपने आप में एक फूल होता है। उल्लेखनीय है कि, गेंदे का एक फूल तभी पूरा होता है या सुंदर तभी लगता है… जब उसकी हर पंखुड़ी विकसित होकर आपस में बँधी हुई हो, एक दूसरे से जुड़ी हुई हो और सभी फूलों का अपना अलग अस्तित्व भी नजर आता हो… ससुराल भी, एक ऐसी जगह है जिसमें बहुत से चरित्र हैं - सास, ससुर, देवर, ननद आदि; वास्तविक यह है कि, इनमे से कुछ संबंध स्वाभाविक तौर पर कड़वे हैं… तो कुछ मीठे भी हैं ! पर नई वधु यही उम्मीद लेकर ससुराल आती है कि, उसका ससुराल सुंदर होगा और सभी को वो एक साथ में लेकर चलेगी जैसे कि, गेंदे का फूल का संगठनात्मक अस्तित्व होता है। जो इतने सारे फूलों को एक साथ बांधकर सुंदरता, एकता, अखंडता का अनुभव करता है इसलिए भगवान के दरबार में गेंदा फूल का अग्रणी स्थान होता है और अंतिम यात्रा में भी मेरा गोंदा फूल ही मृत देह का साथी होता है ।

दूसरा कारण : भावनाएं !

छत्तीसगढ़ की स्मृतियों में रची बसी दूसरी भावनात्मक परिकल्पना के अनुसार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले युवक-युवतियाँ अपने प्रेमी/प्रेमिका को "गोंदा फूल" (वहाँ गेंदे को गोंदा कहते हैं) कह कर भी बुलाते हैं क्योंकि इसके खिलने का समय बसन्त होता है और इसे प्यार का मौसम भी माना जाता है। 

उल्लेखनीय है कि, उक्त दोनों प्रेरणादाई कल्पनायें मेरी स्मृतियों का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे ही परिकल्पनाओं ने मुझे छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहने के लिए प्रेरित करती रहती है ।

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए समर्पित मैं अमोल मालुसरे 

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