सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दी, शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

 

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने को स्वीकृति दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक उपलब्धियों का सार प्रस्तुत करती हैं।

बिंदुवार विवरण एवं पृष्ठभूमि:

भारत सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को “शास्त्रीय भाषाओं” के रूप में भाषाओं की एक नई श्रेणी बनाने का निर्णय लियाथा, जिसमें तमिल को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया और शास्त्रीय भाषा की स्थिति के लिए निम्नलिखित मानदंड निर्धारित किए गए:

क. इसके आरंभिक ग्रंथों/एक हजार वर्षों से अधिक के दर्ज इतिहास की उच्च पुरातनता।

ख. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ी द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

ग. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के उद्देश्य से प्रस्तावित भाषाओं का परीक्षण करने के लिए नवंबर 2004 में साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा एक भाषा विशेषज्ञ समिति (एलईसी) का गठन किया गया था।

नवंबर 2005 में मानदंडों को संशोधित किया गया और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया:

I. इसके प्रारंभिक ग्रंथों/अभिलेखित इतिहास की 1500-2000 वर्षों की अवधि में उच्च पुरातनता।

II. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक संग्रह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा एक मूल्यवान विरासत माना जाता है।

III. साहित्यिक परंपरा मौलिक होनी चाहिए और किसी अन्य भाषण समुदाय से उधार नहीं ली गई होनी चाहिए।

IV. शास्त्रीय भाषा और साहित्य आधुनिक दौर से अलग होने के कारण, शास्त्रीय भाषा और उसके बाद के रूपों या उसकी शाखाओं के बीच एक विसंगति भी हो सकती है।

 भारत सरकार ने अब तक निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषाओं का दर्जा प्रदान किया है:

भाषा

अधिसूचना की तारीख

 

तमिल

12/10/2004

संस्कृत

25/11/2005

तेलुगु

31/10/2008

कन्नड़

31/10/2008

मलयालम

08/08/2013

उड़िया

01/03/2014

 2013 में महाराष्ट्र सरकार की ओर से मंत्रालय को एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ था जिसमें मराठी को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने का अनुरोध किया गया था, जिसे एलईसी को भेज दिया गया था। एलईसी ने शास्त्रीय भाषा के लिए मराठी की सिफारिश की थी। मराठी भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए 2017 में मंत्रिमंडल के लिए मसौदा नोट पर अंतर-मंत्रालयी परामर्श के दौरान, गृह मंत्रालय ने मानदंडों को संशोधित करने और इसे सख्त बनाने की सलाह दी। पीएमओ ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मंत्रालय यह पता लगाने के लिए इस बात पर विचार कर सकता है कि कितनी अन्य भाषाएं पात्र होने की संभावना है।

इस बीच, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए बिहार, असम, पश्चिम बंगाल से भी प्रस्ताव प्राप्त हुए।

इस क्रम में, भाषाविज्ञान विशेषज्ञ समिति (साहित्य अकादमी के अधीन) ने 25.07.2024 को एक बैठक में सर्वसम्मति से निम्नलिखित मानदंडों को संशोधित किया। साहित्य अकादमी को एलईसी के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

i. इसकी उच्च पुरातनता 1500-2000 वर्षों की अवधि में आरंभिक ग्रंथ/अभिलेखित इतिहास की है।

ii. प्राचीन साहित्य/ग्रंथों का एक समूह, जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा विरासत माना जाता है।

iii. ज्ञान से संबंधित ग्रंथ, विशेष रूप से कविता, पुरालेखीय और शिलालेखीय साक्ष्य के अलावा गद्य ग्रंथ।

iv. शास्त्रीय भाषाएं और साहित्य अपने वर्तमान स्वरूप से अलग हो सकते हैं या अपनी शाखाओं के बाद के रूपों से अलग हो सकते हैं।

समिति ने यह भी सिफारिश की कि निम्नलिखित भाषाओं को शास्त्रीय भाषा माने जाने के लिए संशोधित मानदंडों को पूरा करना होगा।

I. मराठी

II. पाली

III. प्राकृत

IV. असमिया

V. बंगाली

 कार्यान्वयन रणनीति और लक्ष्य:

शिक्षा मंत्रालय ने शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं। संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संसद के एक अधिनियम के माध्यम से 2020 में तीन केंद्रीय विश्वविद्यालय स्थापित किए गए। प्राचीन तमिल ग्रंथों के अनुवाद की सुविधा, अनुसंधान को बढ़ावा देने और विश्वविद्यालय के छात्रों और तमिल भाषा के विद्वानों के लिए पाठ्यक्रम प्रदान करने के उद्देश्य से केंद्रीय शास्त्रीय तमिल संस्थान की स्थापना की गई थी। शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण को और बढ़ाने के लिए, मैसूर में केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान के तत्वावधान में शास्त्रीय कन्नड़, तेलुगु, मलयालम और ओडिया में अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र स्थापित किए गए थे। इन पहलों के अलावा, शास्त्रीय भाषाओं के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने के लिए कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार शुरू किए गए हैं। शिक्षा मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषाओं को दिए जाने वाले लाभों में शास्त्रीय भाषाओं के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, विश्वविद्यालयों में पीठ और शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार के लिए केंद्र शामिल हैं।

रोजगार सृजन सहित प्रमुख प्रभाव:

भाषाओं को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने से खासकर शैक्षणिक और शोध क्षेत्रों में रोजगार के अहम अवसर पैदा होंगे। इसके अतिरिक्त, इन भाषाओं के प्राचीन ग्रंथों के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और डिजिटलीकरण से संग्रह, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया में रोजगार पैदा होंगे।

शामिल राज्य/जिले:

इसमें शामिल मुख्य राज्य महाराष्ट्र (मराठी), बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश (पाली और प्राकृत), पश्चिम बंगाल (बंगाली) और असम (असमिया) हैं। इससे व्यापक सांस्कृतिक और शैक्षणिक प्रभाव का राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसार होगा।

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एमजी/आरपीएम/केसी/एमपी प्रविष्टि तिथि: 03 OCT 2024 8:31PM by PIB Delhi(रिलीज़ आईडी: 2061731) आगंतुक पटल : 204

सोमवार, 25 मार्च 2024

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ राज्य के शासकीय कार्यालयों के कामकाज की भाषा बनाए के लिए किया जा रहा मेरा प्रयास... गेंदा फूल से प्रेरित होता है... जैसे गेंदा फूल में सभी को बांधे रखने की क्षमता है... वैसे ही छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलाने के लिए हम सभी को जुड़ना पड़ेगा... पढ़िए एक लेख...

 गेंदा फूल के महत्व को जानना और समझना आवश्यक तो नहीं है लेकिन अगर हम गेंदा फूल के महत्व को समझ लेंगे तो... मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश सरकार के कार्यालयों में कामकाजी भाषा का महत्व मिल जायेगा....

मेरी परिकल्पना गेंदा फूल और CVPPSA 

मेरे छत्तीसगढ़ के लिए गेंदा फूल का महत्व बेहद मायने रखता है क्योंकि छत्तीसगढ़ वासियों के संवेदनापूर्ण परिकल्पना ने ही ससुराल गेंदे फूल जैसी अर्थपूर्ण परिकल्पना को जन्म दिया है जिसके दो कारण है :

पहला : पारिवारिक एकता 

गेंदा फूल दरअसल एक फूल नहीं बल्कि बहुत से फूलों का एक समूह है। गोंदा फूल की वैज्ञानिक परिभाषा पर अगर जाये तो गेंदे के फूल की... प्रत्येक पंखुड़ी दरअसल पंखुड़ी नहीं बल्कि अपने आप में एक फूल होता है। उल्लेखनीय है कि, गेंदे का एक फूल तभी पूरा होता है या सुंदर तभी लगता है… जब उसकी हर पंखुड़ी विकसित होकर आपस में बँधी हुई हो, एक दूसरे से जुड़ी हुई हो और सभी फूलों का अपना अलग अस्तित्व भी नजर आता हो… ससुराल भी, एक ऐसी जगह है जिसमें बहुत से चरित्र हैं - सास, ससुर, देवर, ननद आदि; वास्तविक यह है कि, इनमे से कुछ संबंध स्वाभाविक तौर पर कड़वे हैं… तो कुछ मीठे भी हैं ! पर नई वधु यही उम्मीद लेकर ससुराल आती है कि, उसका ससुराल सुंदर होगा और सभी को वो एक साथ में लेकर चलेगी जैसे कि, गेंदे का फूल का संगठनात्मक अस्तित्व होता है। जो इतने सारे फूलों को एक साथ बांधकर सुंदरता, एकता, अखंडता का अनुभव करता है इसलिए भगवान के दरबार में गेंदा फूल का अग्रणी स्थान होता है और अंतिम यात्रा में भी मेरा गोंदा फूल ही मृत देह का साथी होता है ।

दूसरा कारण : भावनाएं !

छत्तीसगढ़ की स्मृतियों में रची बसी दूसरी भावनात्मक परिकल्पना के अनुसार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले युवक-युवतियाँ अपने प्रेमी/प्रेमिका को "गोंदा फूल" (वहाँ गेंदे को गोंदा कहते हैं) कह कर भी बुलाते हैं क्योंकि इसके खिलने का समय बसन्त होता है और इसे प्यार का मौसम भी माना जाता है। 

उल्लेखनीय है कि, उक्त दोनों प्रेरणादाई कल्पनायें मेरी स्मृतियों का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे ही परिकल्पनाओं ने मुझे छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहने के लिए प्रेरित करती रहती है ।

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए समर्पित मैं अमोल मालुसरे 

सोमवार, 26 फ़रवरी 2024

अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस प्रदर्शनी भाषाओं के वैश्विक सामंजस्य को प्रदर्शित करती है

 

 यह मातृभाषाओं की भावना, महत्व और समाज के क्रमिक विकास में उनकी सूक्ष्म भूमिका को जीवंत करती है,आईजीएनसीए में शुरू हुई यह प्रदर्शनी 29 फरवरी 2024 तक जारी रहेगी, अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की कलानिधि डिवीजन और अकादमिक इकाई ने ‘अक्षर | शब्द | भाषा’ की पेशकश की, जो भारत की भाषाई विविधता का जश्न मनाने और सम्मान करने वाली एक प्रदर्शनी है। साथ ही, यह हमारी सांस्कृतिक विरासत को परिभाषित करने वाली भाषाओं, लिपियों और शब्दों की समृद्धि की खोज करती है।

  दो मुख्य दीर्घाओं दर्शनम I और II और गलियारों में एक जीवंत संवादात्मक दीवार में फैली यह प्रदर्शनी मातृभाषाओं की भावना और महत्व और समाज के क्रमिक विकास में उनकी सूक्ष्म भूमिका को जीवंत करती है।


 दर्शनम II गैलरी में भारत की 22 अनुसूचित भाषाओं में 22 उद्धरणों का संग्रह है, जिसे प्रत्येक भाषा के बारे में कुछ विशेष लाने के लिए तैयार किया गया है और कॉरिडोर के स्थान के साथ दर्शनमI दर्शकों के लिए एक गहन और संवादात्मक अनुभव है। यह प्रदर्शनी 29 फरवरी 2024 तक चलेगी।

'अक्षर | शब्द | भाषा'प्रदर्शनी का उद्देश्य मातृ भाषाओं के महत्व को सामने लाना और लुप्तप्राय भाषाओं को संरक्षित करना है। इसे डिवीजन के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस समारोहों के एक भाग के रूप में कलानिधि डिवीजन, आईजीएनसीए के लिए अकादमिक इकाई, आईजीएनसीए द्वारा आयोजित किया गया है।

भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के बारे में जागरूकता बढ़ाने और बहुभाषावाद को बढ़ावा देने के लिए 17 नवंबर 1999 को हुई घोषणा के बाद से 21 फरवरी को यूनेस्को के अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

प्रदर्शनी का उद्घाटन संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की संयुक्त सचिव सुश्री लिली पाण्डेय, सदस्य सचिव, आईजीएनसीएडॉ. सच्चिदानंद जोशी, वरिष्ठ लिंग विशेषज्ञ, यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय, नई दिल्लीडॉ. हुमा मसूद, निदेशक (प्रशासन), आईजीएनसीएसुश्री प्रियंका मिश्रा, डीन (प्रशासन)प्रोफेसर रमेश गौड़ ने किया।


 संयुक्त सचिव, संस्कृति मंत्रालय सुश्री लिली पाण्डेय

2017 में स्थापित आईजीएनसीए की अकादमिक इकाई की शुरुआत भारतीय कला और सांस्कृतिक विरासत के दस्तावेजीकरण, संरक्षण, सुरक्षित रखने और प्रसार के आईजीएनसीए के अधिकार को बनाए रखने और संस्कृति के विशेष क्षेत्र में काम करने के लिए सक्षम पेशेवरों को प्रशिक्षित करने के लिए की गई थी।


 वरिष्ठ लिंग विशेषज्ञ, यूनेस्को क्षेत्रीय कार्यालय डॉ. हुमा मसूद

2017 में सांस्कृतिक सूचना विज्ञान, निवारक संरक्षण और बौद्ध अध्ययन में पीजीडी जैसे केवल 3 स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के साथ शुरू हुई शैक्षणिक इकाई आज 12 स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रमों और कई महत्वपूर्ण लघु अवधि प्रमाणपत्र पाठ्यक्रमों की सुविधा दे रही है।

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एमजी/एआर/एमपी/डीके प्रविष्टि तिथि: 23 FEB 2024 by PIB Delhi(रिलीज़ आईडी: 2008608) आगंतुक पटल : 38

 

बुधवार, 12 जुलाई 2023

अनुभव साझा हुए... छत्तीसगढ़ के सभी संसद सदस्यों ने छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाली "CVPPSA" को मिलने का समय दिया, अपने अनुभव साझा किए तथा "CVPPSA" की कार्य योजना की समीक्षा भी की व मार्गदर्शन किया ।

 

छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास के लिए अग्रणी प्रयास करने वाली "CVPPSA" दिल्ली पहुंच गई है l

 आग्रह किया गया

 लोकसभा और राज्य सभा में छत्तीसगढ़ राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले सांसदों से मुलाकात करके "CVPPSA"  ने छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश की "प्रमुख कामकाजी भाषा" बनाने का आग्रह किया है सभी सांसदों ने अपने व्यस्ततम समय में से समय निकालकर "CVPPSA" को समय दिया और "CVPPSA" कार्य योजना को जाना और समझा 

मिला वैचारिक समर्थन

छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलवाकर उसको छत्तीसगढ़ राज्य के प्रशासकीय कार्यों को अग्रणी भाषा बनाने के लिए "CVPPSA" के प्रयासों को विगत दिनों के प्रयासों में केंद्र और राज्य सरकार का वैचारिक समर्थन मिला है जिससे छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश की मुख्य कामकाजी भाषा बनाने के प्रयासों को सकारात्मक दिशा मिल गईं है

श्री अरुण साव जी माननीय सांसद बिलासपुर ने "CVPPSA" के प्रयासों को जानने के लिए समय दिया

श्रीमती ज्योत्सना चरणदास महंत जी माननीय सांसद कोरबा छत्तीसगढ़ ने अपने दिल्ली निवास में #cvppsa के द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रमुख कामकाजी भाषा बनाए जाने के लिए की जाने वाली आवश्यक कार्यवाहियों को बताने के लिए समय दिया और अपने अनुभव भी साझा किये

श्री विजय बघेल जी माननीय सांसद दुर्ग ने छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए किये जा रहे प्रयासों के कार्य योजना की जानकारी ली और CVPPSA के लक्ष्य को हासिल करने के लिए मार्गदर्शन किया  

श्रीमती फूलो देवी नेताम जी माननीय राज्य सभा सांसद छत्तीसगढ़ ने अपने दिल्ली निवास पर  छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी क्षेत्र की अग्रणी भाषा बनाए जाने के लिए #cvppsa के कार्यों की जानकारी ली और शुभकामनाएं दी

श्री सुनील कुमार सोनी जी माननीय सांसद रायपुर ने अपने दिल्ली निवास में बातचीत की और  छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाए जाने के विषय पर #cvppsa द्वारा अब तक किए गए कार्यों के विषय पर चर्चा की तथा  अपने अनुभव भी बताए और मार्गदर्शन किया

श्री संतोष पाण्डेय जी, माननीय सांसद राजनांदगांव छत्तीसगढ़ ने अपने दिल्ली निवास  पर छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाए जाने के सन्दर्भ में #cvppsa द्वारा किये जा रहे सकारात्मक पहल पर बातचीत की

श्री मोहन मंडावी जी, माननीय सांसद कांकेर छत्तीसगढ़ ने अपने दिल्ली निवास पर समय देकर छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास करने के लिए चर्चा की और अपने अनुभव साझा किए तथा #cvppsa द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए किए जा रहे प्रयासों की जानकारी ली

श्रीमती गोमती साय जी माननीय सांसद रायगढ़ छत्तीसगढ़ ने अपने दिल्ली निवास पर छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास के लिए किए जा रहे #cvppsa के प्रयासों को जानने तथा  बातचीत करने के लिए समय दिया एवं चर्चा की

श्री चुन्‍नी लाल साहू जी माननीय सांसद महासमुंद ने अपने दिल्ली निवास में छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा के रूप में महत्व दिलाए जाने के लिए आवश्यक विषयों पर #cvppsa से चर्चा की और छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास के लक्ष्य को हासिल करने की रूपरेखा को जाना

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प्रदेश स्तर पर भी मिला महत्त्व

 

छत्तीसगढ़ राज्य के गृह मंत्री माननीय ताम्रध्वज साहू जी ने भी छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रशासकीय महत्त्व दिए जाने के विषय पर किये जा रहे CVPPSA के प्रयासों को जानने के लिए समय दिया  

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दुर्ग जिले के विधायकों ने भी समय दिया और सकारात्मक प्रतिक्रिया दी

दुर्ग शहर के विधायक अरुण वोरा जी ने छत्तीसगढ़ी भाषा को मुख्य कामकाजी भाषा बनाये जाने के प्रयासों को जानने के लिए समय दिया 

भिलाई नगर के विधायक देवेन्द्र यादव जी ने छत्तीसगढ़ी भाषा के सर्वांगीण विकास के लिए CVPPSA के द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बारे में जानने के लिए समय दिया और इस विषय पर किये जा रहे प्रयासों की कार्ययोजना पर चर्चा करने के लिए पुनः समय देने के आग्रह को महत्त्व दिया


छत्तीसगढ़ी भाषा को…प्रदेश की मुख्य कामकाजी भाषा बनाने के लिए हम सभी को अपना योगदान देना पड़ेगा क्योंकि स्थानीय भाषा हमारे अभिव्यक्ति का माध्यम होती है जिसके दो परस्पर संबंधित पहलू है, "पहला पहलू है वक्ता" और "दूसरा पहलू है श्रोता" होता है छत्तीसगढ़ के शासकीय कार्यवाहियों में भाग लेने वाले वक्ता और श्रोता अगर छत्तीसगढ़ी में काम करेंगे तो छत्तीसगढ़ी भाषा को शासकीय महत्व मिल जायेगा और मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा मेरे प्रदेश छत्तीसगढ़ की व्यवहारिक भाषा बनाकर स्थापित हो जायेगी l

छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रयोग वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य के सभी स्थानीय लोग अपने पारिवारिक सदस्यों से बातचीत में करते है किंतु पूर्व में छत्तीसगढ़ी का प्रयोग व्यवसायिक और प्रशासनिक व्यवस्था का अग्रणी हिस्सा थी लेकिन वर्तमान दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति यह है कि, आधुनिक भारत के छत्तीसगढ़ प्रांत की कामकाजी भाषा छत्तीसगढ़ी नहीं बन पाई इसलिए वर्तमान में छत्तीसगढ़ी को पुनः स्थापित करने के लिए सभी स्तरों से प्रयास किया जा रहा और cvppsa इसी प्रयास की अगुवाई कर रहा है और अग्रणी योगदान दे रहा है l
 अगर छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रदेश के कामकाजी व्यवहारो में उसका वास्तविक महत्व स्थापित करवाना है तो छत्तीसगढ़ी भाषा को हमे अपने सभी शासकीय और व्यवसायिक व्यवहारों का हिस्सा बनना पड़ेगा हमे अपने घर-बाहर, बाजार, कार्यालयों और सभी सार्वजनिक स्थानों पर छत्तीसगढ़ी को महत्व दिलवाने पड़ेगा जिसके लिए हमे अपना योगदान देना पड़ेगा अपने सभी व्यवहारों में छत्तीसगढ़ी भाषा को संवाद का माध्यम बनाकर रोपित करना पड़ेगा l
छत्तीसगढ़ी आज हमारे दिलों के जमीन पर जिंदा तो है लेकिन हमारे कामकाजी व्यवहारों से कहीं गुम हो गई है इसलिए हमारे दैनिक व्यवहारों में छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलवाने के लिए हमे हमारी सक्रियता दिखानी पड़ेगी और हमारे दिलों पर राज करने वाली छत्तीसगढ़ी भाषा को दैनिक जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिस्थापित करके छत्तीसगढ़ी भाषा को संवाद का प्रथम माध्यम बनाने की सतत कोशिशों करते रहना पड़ेगा
आज हम छत्तीसगढ़ी के प्रति सम्मान को अपनी भावनाओं में बरकरार तो रखें है लेकिन विडंबना यह है की छत्तीसगढ़ी भाषा को हम कामकाजी दुनिया से कहीं दूर लेजाकर छोड़ भी आयें है हमने छत्तीसगढ़ी भाषा को गुम करने की परिस्थिति कायम करने का कार्य व्यवहार पिछले दशकों में किया है और छत्तीसगढ़ी के व्यवहारिक अस्तित्व को खत्म करने वाले आलोचनात्मक घटकों का हम भी एक हिस्सा बन रहे है छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रति हमारा कार्य व्यवहार वर्तमान परिस्थिति में आलोचना किए जाने की स्थिति में है इसलिए छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व नहीं देने की हमारी सामाजिक भूमिका पर विराम लगाकर हमे छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व देने की भूमिका को अंकुरित करने का प्रयास करना वर्तमान समय की मांग है 
प्रयास ! जो छत्तीसगढ़ राज्य में…
मेरी छत्तीसगढ़ी को पुनः स्थापित कर दे
छत्तीसगढ़ी भाषा का विकास, प्रचार, प्रसार और स्थापना अभियान छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए समर्पित अभियान है जो छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश की कामकाजी भाषा बनाने के व्यवहारिक प्रयास को करने गतिमान करने का माध्यम है यह प्रयास विलुप्त अवस्था में पहुंच चुकी छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकजी महत्व दिलवाने वाले सभी संभावित अवसरों पर प्रकाश डालता है ताकि छत्तीसगढ़ी भाषा का व्यवहारिक और कामकाजी अस्तित्व पुनः स्थापित हो सके इसलिए छत्तीसगढ़ी भाषा के महत्व को स्थापित करने का वैचारिक प्रयास जारी है और जारी रहेगा l

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