सोमवार, 25 मार्च 2024

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को छत्तीसगढ़ राज्य के शासकीय कार्यालयों के कामकाज की भाषा बनाए के लिए किया जा रहा मेरा प्रयास... गेंदा फूल से प्रेरित होता है... जैसे गेंदा फूल में सभी को बांधे रखने की क्षमता है... वैसे ही छत्तीसगढ़ी भाषा को महत्व दिलाने के लिए हम सभी को जुड़ना पड़ेगा... पढ़िए एक लेख...

 गेंदा फूल के महत्व को जानना और समझना आवश्यक तो नहीं है लेकिन अगर हम गेंदा फूल के महत्व को समझ लेंगे तो... मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रदेश सरकार के कार्यालयों में कामकाजी भाषा का महत्व मिल जायेगा....

मेरी परिकल्पना गेंदा फूल और CVPPSA 

मेरे छत्तीसगढ़ के लिए गेंदा फूल का महत्व बेहद मायने रखता है क्योंकि छत्तीसगढ़ वासियों के संवेदनापूर्ण परिकल्पना ने ही ससुराल गेंदे फूल जैसी अर्थपूर्ण परिकल्पना को जन्म दिया है जिसके दो कारण है :

पहला : पारिवारिक एकता 

गेंदा फूल दरअसल एक फूल नहीं बल्कि बहुत से फूलों का एक समूह है। गोंदा फूल की वैज्ञानिक परिभाषा पर अगर जाये तो गेंदे के फूल की... प्रत्येक पंखुड़ी दरअसल पंखुड़ी नहीं बल्कि अपने आप में एक फूल होता है। उल्लेखनीय है कि, गेंदे का एक फूल तभी पूरा होता है या सुंदर तभी लगता है… जब उसकी हर पंखुड़ी विकसित होकर आपस में बँधी हुई हो, एक दूसरे से जुड़ी हुई हो और सभी फूलों का अपना अलग अस्तित्व भी नजर आता हो… ससुराल भी, एक ऐसी जगह है जिसमें बहुत से चरित्र हैं - सास, ससुर, देवर, ननद आदि; वास्तविक यह है कि, इनमे से कुछ संबंध स्वाभाविक तौर पर कड़वे हैं… तो कुछ मीठे भी हैं ! पर नई वधु यही उम्मीद लेकर ससुराल आती है कि, उसका ससुराल सुंदर होगा और सभी को वो एक साथ में लेकर चलेगी जैसे कि, गेंदे का फूल का संगठनात्मक अस्तित्व होता है। जो इतने सारे फूलों को एक साथ बांधकर सुंदरता, एकता, अखंडता का अनुभव करता है इसलिए भगवान के दरबार में गेंदा फूल का अग्रणी स्थान होता है और अंतिम यात्रा में भी मेरा गोंदा फूल ही मृत देह का साथी होता है ।

दूसरा कारण : भावनाएं !

छत्तीसगढ़ की स्मृतियों में रची बसी दूसरी भावनात्मक परिकल्पना के अनुसार छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अंचलों में रहने वाले युवक-युवतियाँ अपने प्रेमी/प्रेमिका को "गोंदा फूल" (वहाँ गेंदे को गोंदा कहते हैं) कह कर भी बुलाते हैं क्योंकि इसके खिलने का समय बसन्त होता है और इसे प्यार का मौसम भी माना जाता है। 

उल्लेखनीय है कि, उक्त दोनों प्रेरणादाई कल्पनायें मेरी स्मृतियों का अभिन्न हिस्सा है और ऐसे ही परिकल्पनाओं ने मुझे छत्तीसगढ़ी भाषा को कामकाजी भाषा बनाने के लिए सतत प्रयासरत रहने के लिए प्रेरित करती रहती है ।

मेरी छत्तीसगढ़ी भाषा के लिए समर्पित मैं अमोल मालुसरे 

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